रिसाला ताज़िया दारी हिन्दी | رسالہ تعزیہ داری اردو
आज अय्यामे मुहर्रम में जो खुराफ़ात देखने को मिलती हैं कि मालूम ही नहीं होता कि वे ग़म मना रहे हैं या खुशो और इल्जाम सुन्नियों पर यह लगाया जाता है कि लोग ताजियादार हैं और मुहर्रम के दिनों में ये लोग जहालत, बिदआत, खुराफात, शिर्क ताजिया परस्ती और बुतपरस्ती फैलाते हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद आपको बखूबी अन्दाजा हो जाएगा कि सुन्नी आलिमों बिलखुसूस आलाहज़रत ने आजकल फैल रही इन बिदअतों को कितने साफ़ अलफ़ाज़ में बयान किया है कि यह सब बातें कितनी बुरी हैं साथ ही उन लोगों की ज़बान (यानी वहाबियों की ज़बान) को भी शरई दलीला स बन्द किया है जो इन सब बातों का शिर्क बताते और हज़ारो भोले और कम इल्म सन्नियों को मुशरिक बनाते हैं।
✍️ आलाहज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान बरेलवी
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