*📬 रद्दे वाहबियत पॉस्ट। 📬*
*अक्सर वहाबिया एक ऐतराज़ करते हैं ( तुम सुन्नी लोग फातिहा क्यों दिलाते हो ? क्योंकि जो वली है वो तो बख्शा हुआ ही है फिर क्या फायदा उनको सवाब पहुंचाने का ? )*
अल जवाब ए मिसाली ।
जिस तरह किसी से मिलने जाने पर उसको तोहफे दिए जाते हैं , भले ही सामने वाला करोड़पति ही क्यों न हो मगर उसको जब उसका चाहने वाला तोहफा देता या भिजवाता है तो उसको खुशी होती है , जबकि वो करोड़पति है उस जैसे तोहफे वो हज़ारों ला सकता है ,उसको ज़रूरत नहीं तोहफा लेने की , मगर मुहब्बत ओ खुशी हासिल करने और ज़ाहिर करने का तरीक़ा है तोहफा लेना देना , हदीस ए पाक से भी साबित है ,
और जब वही चीज़ किसी ग़रीब को दी जाए तो ये उसके लिए खुशी और मदद दोनों बन जाती है, चूंके वो ग़रीब है उसके पास इतना सरमाया नहीं है की वो खरीद सके , लिहाज़ा जब उसका दोस्त भाई या चाहने वाला उसे कुछ देता है तो उसको मदद और खुशी दोनों हासिल होती हैं ,
बिला तमसील । बात समझाने के लिए थी ।
अब ग़रीब की जगह हम जैसे नाकारों को रखें ,जिसके पास अपनी कोई नेकी नहीं , जब कोई हमें इसाल ए सवाब करता है तो हमें खुशी भी होती है , और हमारी मदद भी होती है ,अज़ाब में कमी भी होती है ,
और अमीर की जगह वली अल्लाह को रखें , उनको हमारे तहाइफ़ की ज़रूरत नहीं उनके पास वैसे ही बहुत नेकियाँ हैं , वो बेशक बख्शे हुए हैं , मगर हम उनसे अपनी मुहब्बत का इज़हार करते हैं , उनको इससे खुशी होती है , और हमारी मुहब्बत की वजह से उनकी तवज्जोह हमारी जानिब होती है ।
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वल्लाहु आलम ।
वस्सलाम फ़क़त ।
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